भारत की अनोखी और परंपरागत युद्ध कला स्क्वाय मार्शल आर्ट।
यह केवल लड़ने की कला नहीं, बल्कि आत्मरक्षा, अनुशासन और आत्मविश्वास की ताकत है।”
“स्क्वाय की शुरुआत जम्मू और कश्मीर की वादियों में हुई थी। पुराने समय में योद्धा इस कला का उपयोग तलवार और ढाल से युद्ध के लिए करते थे।”
बाद में ग्रैंडमास्टर नाज़िर अहमद मीर ने इस परंपरागत कला को आधुनिक रूप दिया और इसे एक खेल के तौर पर पहचान दिलाई।
“आज यह कला न सिर्फ भारत में, बल्कि दुनिया के कई देशों में फैली हुई है और इसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी मान्यता मिल चुकी है।”
स्क्वाय मुख्यतः तीन भागों में बाँटा गया है:
1. हथियारों के साथ युद्ध (Armed Combat)
- लकड़ी की तलवार (स्फुर) और ढाल (फरी) का उपयोग होता है।
- खिलाड़ी एक-दूसरे से सुरक्षा उपकरण पहनकर स्पैरिंग करते हैं।
2. बिना हथियार की लड़ाई (Unarmed Combat)
- किक, पंच, ब्लॉक और थ्रो जैसी तकनीकें सिखाई जाती हैं।
- यह हिस्सा आत्मरक्षा के लिए बहुत उपयोगी होता है।
3. फार्म्स या ‘काटा‘
- एकल अभ्यास जिसमें तयशुदा चालों और स्टेप्स का अभ्यास किया जाता है।
स्क्वाय सिर्फ युद्ध कला नहीं, बल्कि संपूर्ण व्यक्तित्व विकास का साधन है। इसके लाभ हैं:
- शारीरिक स्वास्थ्य और फिटनेस में सुधार
- मानसिक एकाग्रता और अनुशासन
- आत्मरक्षा की क्षमता
- आत्मविश्वास और साहस में वृद्धि
- युवा वर्ग को नशे और गलत संगति से दूर रखना
- भारतीय सांस्कृतिक विरासत से जुड़ाव
राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मान्यता
“स्क्वाय को भारत सरकार के School Games Federation of India (SGFI) ने मान्यता दी है। आज यह खेलो इंडिया, एशियन इंडोर गेम्स, और साउथ एशियन गेम्स का हिस्सा भी है।”
“भारत के अलावा यह कला नेपाल, श्रीलंका, यूएई, और मलेशिया जैसे देशों में भी सिखाई जा रही है।”
स्क्वाय में करियर के अवसर
अगर आप स्क्वाय में निपुण हो जाते हैं, तो आप इन क्षेत्रों में करियर बना सकते हैं:
- स्क्वाय प्रशिक्षक (Instructor / Coach)
- अपनी मार्शल आर्ट एकेडमी शुरू करना
- महिला आत्मरक्षा ट्रेनर
- राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में भाग लेना
- स्पोर्ट्स कोटा से सरकारी नौकरी पाना
स्क्वाय कैसे शुरू करें?
“अगर आप स्क्वाय सिखना चाहते हैं, तो अपने शहर के मान्यता प्राप्त स्क्वाय ट्रेनिंग सेंटर से जुड़ें।”
अगर आप मध्य प्रदेश के भोपाल में रहते हैं, तो आपको इन दो स्कूलों में जाना चाहिए। भोपाल एकेडमी को–एड हायर सेकेंडरी स्कूल और ब्रिगेडियर त्रिवेदी मेमोरियल हायर सेकेंडरी स्कूल
ज़रूरी चीज़ें:
- स्क्वाय की ड्रेस (यूनीफॉर्म)
- सुरक्षा उपकरण (हेलमेट, ग्लव्स आदि)
- योग्य प्रशिक्षक की देखरेख
“ट्रेनिंग की अवधि लगभग 6 महीने से 1 साल होती है, जिसमें आपको बुनियादी से लेकर उन्नत स्तर तक की जानकारी दी जाती है।”
[समापन: मोटिवेशन और कॉल टू एक्शन]
“तो दोस्तों, स्क्वाय केवल एक लड़ाई की तकनीक नहीं, बल्कि यह आत्मरक्षा, आत्मविश्वास, और आत्मविकास का एक माध्यम है।“
“अगर आपको यह जानकारी उपयोगी लगी हो तो इसे लाइक, शेयर और सब्सक्राइब ज़रूर करें।“
“और कमेंट करके बताइए कि क्या आप भी स्क्वाय सिखना चाहेंगे?”
“धन्यवाद – जय हिंद, जय भारत!”